दरभंगा, 1 अप्रैल। लब्ध प्रतिष्ठित इतिहासकार एवं शिक्षाविद प्रोफेसर रत्नेश्वर मिश्र ने कहा है कि मूल भाषा और अनुदित भाषा का सम्यक् ज्ञान समुचित अनुवाद के लिए आवश्यक होता है। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं वरिष्ठ इतिहासकार प्रोफेसर रत्नेश्वर मिश्र ने शनिवार को ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय इतिहास विभाग और पूर्ववर्ती छात्र संघ की ओर से शनिवार को अपने सम्मान में आयोजित अभिनन्दन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि मुझे इतिहास का छात्र होने के कारण विषय वस्तु एवं घटना क्रम का ज्ञान था, जिससे मुझे उपन्यास के अनुवाद में काफी सहायता मिली।
अगर अनुवादक को दोनों भाषाओं के साथ कथानक की पृष्ठभूमि का ज्ञान हो तो अनुवाद हमेशा मूल के अनुरूप होगा।
अपने उद्बोधन में प्रोफेसर रत्नेश्वर मिश्र ने आजादी उपन्यास की अनुवाद प्रक्रिया की चर्चा करते हुए कहा कि साहित्य अकादमी से पुरस्कृत अंग्रेजी उपन्यास “आजादी” अंग्रेजी में चमन नाहल ने लिखा है।
उन्होंने कहा कि उपन्यासकार चमन नाहल ने अपने उपन्यास “आजादी” में भारत देश की आजादी एवं विभाजन की समस्या को सबसे अधिक झेलने वाले पंजाब और बंगाल क्षेत्र की समाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उथल पुथल को काफी बारीकी से उकेरा है।
वैसे विभाजन की त्रासदी पर अभी तक लगभग बावन से अधिक उपन्यास लिखे गए हैं। उन सभी उपन्यासों में निश्चित रूप से यह उपन्यास सर्वाधिक श्रेष्ठ है, अपने उपन्यास शिल्प के आधार पर मैंने भरसक प्रयास किया कि उपन्यास को अंग्रेजी से मैथिली में अनुवाद में उपन्यास का कथ्य और शिल्प को यथा रुप में मैथिली भाषा में स्पष्ट रूप से रख सकूँ। सबों को मैथिली अनुवाद पसंद आया मैं इसके लिए सबों के प्रति आभारी हूँ।
गौरतलब है कि साहित्यअकादेमी अनुवाद पुरस्कार 2022 मैथिली भाषा में रत्नेश्वर मिश्र को उनके द्वारा अनूदित उपन्यास ‘‘आजादी’’ के लिए पणजी गोवा में प्रदान किया गया है I
अभिनन्दन समारोह की अध्यक्षता इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर नैयर आजम ने किया। कार्यक्रम में प्रोफेसर अजीत कुमार वर्मा, प्रोफेसर तुला कृष्ण झा, प्रोफेसर विद्यानाथ झा, प्रोफेसर चन्द्र भानु सिंह, प्रोफेसर अमीर अली, प्रोफेसर अनिल कुमार झा एवं अवनींद्र कुमार झा आदि ने अपने अपने विचार व्यक्त किया। स्वागत भाषण पूर्व छात्र संघ के संरक्षक प्रोफेसर धर्मेन्द्र कुमर ने किया। मंच संचालन डॉ० अमिताभ कुमार ने किया